Sariya Cement Kanpur में बिना सीमेंट और सरिया के 100 साल से है खड़ा कानपुर का ये पुल, नीचे नदी और ऊपर बहती है नहर

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Sariya Cement Kanpur में बिना सीमेंट और सरिया के 100 साल से है खड़ा कानपुर का ये पुल, नीचे नदी और ऊपर बहती है नहर। अब ऐसी बेजोड़ तकनीकी का एक ऐसा ex है। जिसमे हमारे कानपुर शहर में देखने को मिलता है। जो की बहुत से बड़े बड़े इंजीनियरों को आश्चर्य में उतार देते है। अब हम ब्रिटिश काल में बने करीब 100 साल से अधिक पुराने पुल की बात कर रहे हैं। जिसे देखने के बाद हर कोई असमंजस में पड़ जाता है। क्योंकि इस पुल के नीचे नदी बहती है और ऊपर नहर का पानी बहता है। उसके साथ ही पुल से वाहन और लोग आते जाते रहते  हैं। और तो और इसके निर्माण में न ही सीमेंट का उपयोग हुआ है। और न ही सरिया का इस्तेमाल हुआ है।

Sariya Cement Kanpur में बिना सीमेंट और सरिया के 100 साल से है खड़ा कानपुर का ये पुल, नीचे नदी और ऊपर बहती है नहर

Sariya Cement Kanpur में बिना सीमेंट और सरिया के 100 साल से है खड़ा कानपुर का ये पुल, नीचे नदी और ऊपर बहती है नहर

कई सालो से 1915 के करीब अंग्रेजों ने इस अनोखे पुल का निर्माण कराया था। और मेहरबान सिंह पुरवा गांव के पास बने इस पुल का रास्ता एक तरफ गुजैनी बाईपास को जाता है। वहीं दूसरी तरफ ये रास्ता बिधनू को जाता है ।ये पुल कई मायनों में बहुत खास तो है ही इंजीनियरिंग की अनोखी मिसाल भी है क्यों कि इस पुल के नीचे पांडू नदी बहती है और ऊपर रामगंगा नहर का पानी बहता है। उसके साथ ही वाहन भी नहर के बगल से बने रास्ते से गुजरते हैं।

बिना सीमेंट और सरिये से बना है पुल

यह बिना ईंट के बने ऊंचे खंभे और चौड़ी दीवारें इस पुल को सहारा देने के लिए हैं। उसके साथ ही पांडु नदी पर छह पिलर भी बने हुए हैं जो नीचे करीब 25 फीट की गहराई से ऊपर आए हैं। अब  इन पर गोलाकार पुलिया नुमा आर्च के माध्यम से पानी निकालने की व्यवस्था भी है। यह पुल की देखरेख मरम्मत और पैदल जाने के लिए भी व्यवस्था नीचे से नदी के पास से है. जानकारों के अनुसार पुल का निर्माण ब्रिक वर्क से किया गया है. इसमें बिना सीमेंट और सरिया के ही इसकी मजबूती देखते बनती है। अब ये नदी के नीचे पहले ईंटों के ही पिलर बनाए गए हैं। जिसके बाद गोलाकार रूप में छह हिस्सों में पुल बंटा है।

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इन चीजों से किया गया है तैयार

अब ग्रामीण अनियंत्रण सेवा विभाग में सहायक अभियंता रहे अरविंद कुमार शुक्ला बताते हैं कि इस पुल में ब्रिक वर्क के निर्माण में सुर्खी और चूने के साथ तैयार किया गया था, जो बेहद मजबूत होता था. इसमें गुड़ का सीरा अरहर दाल का मिश्रण इसे और मजबूत बनाता था. तभी इसकी मजबूती बनी है और पिलर का जो डिजाइन ऐसा है कि अभी 50 सालों से अधिक ऐसे ही पुल खड़ा रहेगा। 

अब यह अरविंद कुमार शुक्ला ने बताया  कि ऐसे पुलों को इंजीनियरिंग की भाषा में एक्वाडक्ट कहा जाता हैं। वर्तमान में पुलों का निर्माण रेनफोर्स्ड सीमेंट कांक्रीट यानी आरसीसी से हो रहा है जिनमें सरिया या लोहे के गार्डर का प्रयोग भी होता है, पर इस प्राचीन पुल में ऐसा नहीं है. अरविंद कुमार शुक्ला खुद मानते हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसा पुल कहीं और नहीं देखा. ऐसे बेजोड़ तकनीकी से बने पुल से आज के इंजीनियरों को सबक तो लेना ही चाहिए। अब सरकार को भी इसे संरक्षित करना चाहिए तो पर्यटन का नया केंद्र भी बन सकता है।

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