Ashwagandha Farming क्या आपको पता है अश्वगंधा की खेती कर किसान आज के समय में मोटी कमाई कमा सकते है
Ashwagandha Farming : औषधीय गुणों से भरपूर अश्वगंधा की खेती कर किसान आज के समय में मोटी कमाई कर रहे हैं । लागत से कई गुना अधिक कमाई होने के चलते ही इसे कैश कॉर्प भी कहा जाता है । पूरे भारत में और खासकर सूखे प्रदेशों में अश्वगंधा का पौधा पाए जाते हैं। ये अपने आप उगते हैं। इसकी खेती भी की जाती है। ये वनों में मिल जाते हैं। अश्वगंघा के पौधे 2000-2500 मीटर की ऊंचाई तक पाए जाते हैं।
अश्वगंधा एक अद्वितीय गंध और ताकत बढ़ाने की क्षमता रखने वाला पौधा है । इसका वानस्पतिक नाम विथानिया सोम्निफेरा है. अश्वगंधा महिलाओं के लिए काफी लाभकारी होता है । साथ ही इससे कई औषधी और दवाइयां बनाई जाती हैं । यहीं कारण है कि इसकी मांग हमेशा बनी रहती है । अश्वगंधा के फल के बीज, पत्ते, छाल, डंठल और जड़ों की बिक्री होती है और अच्छी कीमत मिलती है ।
अश्वगंधा की उन्नतशील खेती वैज्ञानिक विधि से करने की जानकारी
अश्वगंधा की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार योजनाएं भी चला रही है । भारत देश मे अश्वगंधा की खेती अन्य प्रदेशों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, केरल, जम्मु कश्मीर एवं पंजाब में हो रही है | इसकी बुआई से लेकर कटाई तक बहुत सावधानियाँ बरतनी पड़ती है |किसान समाधान आप सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आया है।
अश्वगंधा क्या है या अश्वगंधा के गुण क्या है
आप सोचते होंगे कि अश्वगंधा क्या है या अश्वगंधा के गुण क्या है? दरअसल अश्वगंधा एक जड़ी-बूटी है। अश्वगंधा का प्रयोग कई रोगों में किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि मोटापा घटाने, बल और वीर्य विकार को ठीक करने के लिए अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा अश्वगंधा के फायदे और भी हैं। अश्वगंधा के अनगिनत फ़ायदे हैं। अश्वगंधा की पत्तियाँ और जड़ो को अलग अलग तरह से औषधि के रूप में उपयोग में लिया जाता है।
कई तरह के औषधिय गुणों के कारण इसकी मांग हमेशा बनी रहती है जो की औषधिय पौधो की खेती अश्वगंधा की खेती करना अच्छी आमदनी करने वाली खेती के रूप में एक अच्छा विकल्प है । और अश्वगंधा का नियमित सेवन शारीरिक रूप से दुर्बलता को कम करने और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढाता है इसके अलावा इसका नियमित सेवन शरीर की थकान को कम कर नीद के लिए एक अचूक औषधि है।
अश्वगंधा का पेड़ –
अश्वगंधा का पेड़ दिखने में झाड़ीनुमा होता है जो की लम्बाई में करींब 65 से 90 सेंटीमीटर तक होता है।
अश्वगंधा की जड़ –
अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण बना कर ओषधीय उपयोग में लिया जाता है इसकी जड़ो की लम्बाई 10 से 15 सेंटीमीटर तक की होती है।
अश्वगंधा के पत्ते –
अश्वगंधा की पत्तियाँ रोमयुक्त, अण्डाकार आकार की होती हैं। जिनका उपयोग भी कई तरह की ओषधियो में किया जाता है।
अश्वगंधा का वानस्पतिक व वैज्ञानिक परिचय
अलग-अलग देशों में अश्वगंधा कई प्रकार की होती है, लेकिन असली अश्वगंधा की पहचान करने के लिए इसके पौधों को मसलने पर घोड़े के पेशाब जैसी गंध आती है। अश्वगंधा की ताजी जड़ में यह गंध अधिक तेज होती है। वन में पाए जाने वाले पौधों की तुलना में खेती के माध्यम से उगाए जाने वाले अश्वगंधा की गुणवत्ता अच्छी होती है। तेल निकालने के लिए वनों में पाया जाने वाला अश्वगंधा का पौधा ही अच्छा माना जाता है।
इसके दो प्रकार हैं-
छोटी असगंध (अश्वगंधा)
इसकी झाड़ी छोटी होने से यह छोटी असगंध कहलाती है, लेकिन इसकी जड़ बड़ी होती है। राजस्थान के नागौर में यह बहुत अधिक पाई जाती है और वहां के जलवायु के प्रभाव से यह विशेष प्रभावशाली होती है। इसीलिए इसको नागौरी असगंध भी कहते हैं।
बड़ी या देशी असगंध (अश्वगंधा)
इसकी झाड़ी बड़ी होती है, लेकिन जड़ें छोटी और पतली होती हैं। यह बाग-बगीचों, खेतों और पहाड़ी स्थानों में सामान्य रूप में पाई जाती है। असगंध में कब्ज गुणों की प्रधानता होने से और उसकी गंध कुछ घोड़े के पेशाब जैसी होने से संस्कृत में इसकी बाजी या घोड़े से संबंधित नाम रखे गए हैं।
बाहरी आकृति के अनुसार अश्वगंधा की प्रजातियाँ
बाजार में अश्वगंधा की दो प्रजातियां मिलती हैं-
– पहली मूल अश्वगंधा Withania somnifera (Linn.) Dunal, जो 0.3-2 मीटर ऊंचा, सीधा, धूसर रंग का घनरोमश तना वाला होता है।
– दूसरी काकनज Withania coagulans (Stocks) Duanl, जो लगभग 1.2 मीटर तक ऊंचा, झाड़ीदार तना वाला होता है।
असली अश्वगंधा की पहचान कैसे करें
अश्व + गंधा जैसे की नाम से ही स्पष्ट होता है अश्व =घोडा एवंम गंधा = गंध अर्थात घोड़े की गंध वाला अश्वगंधा की पहचान के लिए जब इसके पोधे को हाथ से मसलकर सुगंध लेते है तो इसकी गंध घोडे की तरह आती है ये ही।
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